यूएस : पुलिस क्रूरता, नस्लवाद और ध्रुवीकरण की राजनीति Hindi Share Tweetटेलिविज़न और सोशल मीडिया पर आने वाली क्रूर तसवीरें काफ़ी भयानक हैं: कार ब्लास्टिंग, नाइटक्लबों में होने वाली सामूहिक हत्याएं, हत्यारे पुलिसवाले और पुलिसवालों के हत्यारे. लेनिन ने इसी को अंतहीन भयानकता का नाम दिया था......अंतहीन. और ये केवल दूर दराज़ के देशों जैसे इराक़, अफ़गानिस्तान और मेक्सिको में ही नहीं बल्कि इस पृथ्वी के अमीरतम देशों के कुछ बेहद समृद्ध शहरों में भी हो रहा है. यह परिघटना पूंजीवाद का क्रूरतम संकट है, इस व्यवस्था का ऐसा भयानक चेहरा जिसने समूची मानव जाति को अपने चपेट में ले लेने का खतरा पैदा कर दिया है.फोटो: ओरिगन डिपार्टमेंट ऑफ़ ट्रांसपोर्टेशन – स्वाट टीम सी सी बाई 2.० ( सोशलिस्ट अपील का जुलाई २०१६ का सम्पादकीय)रूसी क्रान्ति के आगे बढ़ने के तकरीबन एक सदी बाद, सभ्यता ने खुद को एक अँधेरी गली में पाया.कम्युनिस्ट घोषणापत्र से लिए गए कार्ल मार्क्स के काव्यात्मक शब्दों को उधृत करें तो ये निष्कर्ष निकलता है कि मानवता ने शुरू में सामाजिक श्रम की सहायता से तकनीक और उत्पादन का अथाह जादू जगा डाला था. हम सभी के लिए हर चीज़ की बहुलता हमारे पहुँच के भीतर थी. वास्तविकता और नीरसता की हकीकत और अपमानजनक परिस्थितियों को हम करोड़ों लोग झेलने को बाध्य हैं. एक असली मानवीय समाज को जरूरत है ढांचागत, संस्थागत और सर्वांगीण विकास की. लेकिन इसकी राह में पूँजीवाद अपना दैत्याकार मुंह खोले खड़ा है.इसकी जड़ में, वर्गों के बीच में बढ़ती दरार कारण है इस चौड़े होते ध्रुवीकरण का. लेकिन बिना किसी स्पष्ट निकासी के रास्ते और आगे बढ़ने के तरीके के यह कुंठा, खर्चों और हिंसा में बढ़त ही होती जा रही है. इस साल की शुरुआत से पुलिस ने लगभग ५०० लोगों को गोली मार कर हत्या कर दी है. खौलते गुस्से के बाद भी, दो सालों में एक भी पुलिस ऑफिसर को दोषी करार नहीं दिया गया. अंत में जब माइक ब्राउन और एरिक गार्नर का मामला जब तूल पकड़ा तब ब्लैक लाइव्स मैटर (बी एल एम) उभर कर आया. ट्विन सिटीज़ के फिलैंडो कैस्टाइल और एल्टन स्टर्लिंग फिलांडो के बैटन रो की निर्लज हात्याओं ने ऐसा शोकजनक उभार पैदा किया जिसकी वजह से बी एल एम के खिलाफ प्रदर्शन को एक नया उभार मिला. देश भर में स्वतःस्फूर्त प्रदर्शन फिर से उठ खड़े हुए और हज़ारों गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं.डलास में, अफ़गानिस्तान में नियुक्त रह चुके एक रिटायर्ड यू एस आर्मी वाले ने पुलिस द्वारा की गईं कुछ अन्यायायिक हत्याओं के बदले में पांच गैर-वर्दीधारी अफसरों को गोली मार दी और शांतिपूर्वक चल रहे बी एल एम प्रदर्शन के समापन के वक़्त कुछ और लोगों को मार डाला. लेकिन व्यक्तिगत हिंसा, चाहे वह पूँजीवादी राज्य द्वारा फैलाए गए संगठित दर भय के माहौल के विरोध में ही क्यूँ न हो, केवल मामले को और बिगाड़ ही सकता है. ऐसे कदम शोषकों और शाषितों के बीच के, उत्पीड़क वर्ग और उत्पीड़तों के बीच के बुनियादी फर्क को ख़त्म नहीं कर सकता है. लिऑन टोर्टस्की ने इस बात को इस ढंग से समझाया था, “व्यक्तिगत बदला हमें संतुष्ट नहीं कर सकता है. हमें पूंजीवादी व्यवस्था के साथ हिसाब-किताब करना है जो कि एक अकेले कार्यकर्ता के लिए बेहद बड़ा कदम है.”सुधारवादी राजनैतिज्ञ और चापलूस नेता बस घड़ियाली आंसू बहाने और एकता तथा अहिंसा के झूठे वादे ही कर सकते हैं. वे राष्ट्र की टूटन की फ़रियाद करते हैं, पुलिस और जनता के बीच की खाई को पाटने की अपील करते हैं, और भयाक्रांत तरीके से विस्फोटक स्थिति का इंतज़ार कर रहे हैं. सर से पाँव तक हथियारों से लैस होकर, हथियारों की बिक्री से करोड़ों की कमाई करके, दुनिया में बमबारी और ड्रोन की बारिश करके और और श्रमिक वर्ग को हथियारविहीन करने के क़ानूनों पर जोर देकर, वे पवित्र भाव से दर्शा रहे हैं कि “सभी जिन्दगियां कीमती हैं” –जिसमें जॉर्ज ओरवेल ने निश्चित रूप से जोड़ा होता कि, कुछ जिंदगियां औरों से अधिक मायने रखती हैं.”युद्धोपरांत उत्थान के सापेक्षिक वर्गीय शान्ति – जिसमें सापेक्षिक से हमारा आशय “मादक पदार्थों का युद्ध है – गरीबों के खिलाफ छिड़ा एक तरफा नागरिक संघर्ष है --- और उसे अभूतपूर्व आर्थिक उछल के रूप में देखा जा रहा था. इस समृद्धि ने पूँजी की तानाशाही के किनारों को जनसँख्या के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नकारा बना दिया.लेकिन यह अनिश्चितकाल तक चल नहीं सका. यह व्यवस्था अन्दर से बाहर की ओर से सडन का शिकार हो रही है. इस व्यवस्था से फायदा होने वाले लोगों की संख्या सिकुड़ रही है. तथाकथित अमेरिकी “मध्य वर्ग” का प्रतिरोध निर्दयतापूर्वक कुचला जा रहा है. १% निजी संपत्ति की अग्रगामी रक्षा सैन्य बलों – जोकि वर्गीय शान्ति के लिए एक बामुश्किल समाधान है. गरीब जनता में राज्य-प्रायोजित आतंक बेहद जरूरी है क्योंकि श्रमिकों और गरीबों की संख्या सपेक्षतः बहुलांश है. चूँकि प्राधिकारियों और पुलिस बलों के लडखडाहट भरी स्थिति के कारण, पूंजीपतियों को परिस्थितियों का भय सता रहा है क्यूंकि “फूट डालो और राज करो” की उनकी रणनीति उनको उल्टा चक्कर खिला सकती है – अपनी संपत्ति और अपनी ताकत को बचा पाने के लिए वे संख्या म्विन बेहद कम हैं.पिंजरे में कैद भूखे चूहों की तरह की स्थिति में रह रहे मनुष्य भी उसी अनुसार व्यवहार करेंगे.यदि सभी को रोजगार, स्वास्थय सुरक्षा, शिक्षा, कामलायक आवास, मनुष्यों के बीच के रिश्ते बदले हुए होते तो उस स्थिति में उबका पुलिस से लेना देना नहीं होता और शायद पुलिस की जरूरत भी नहीं जाती. लेकिन अभावग्रस्तता की वजह से संसाधनों की गैर-बराबरी लागू करना जरूरी हो जाता है. इसके पीछे का कारण केवल मुनाफा है जो उत्पादन के वितरण, और वातावरण के साथ संतुलन का आदान प्रदान है जो इस न्यायसंगत व्यवस्था के आड़े आता है.श्रमिक वर्ग के पास पूँजीवाद को एकबारगी और हमेशा के लिए ही समूल नाश करने की क्षमता है – जरूरत बस इस बात की है कि उसके पास उचित नेतृत्व हो जो उसके वर्ग की अनछुई ताकत को उभार सके. इस नेतृत्व के अभाव में, इस अस्थाइत्व का गतिरोध कई सालों या दशकों तक लम्बा चल सकता है. इस गतिरोध का दोष अंततः उन पूर्व-पूंजीवादी श्रमिक नेताओं की वर्तमान फसल की वजह से है, जो एक क्रांतिकारी ज्वालामुखी शक्ति पर बैठे तो हैं लेकिन श्रमिकों की अन्तर्निहित शक्ति को बेलगाम छोड़ने के विरुद्ध है. इस समय जरूरी यह है की आवश्यक तौर पर एक नए नेतृत्व को पैदा किया जाए.जब हम एक चुनाव के एक “डंपस्टर फायर” नामक रिपब्लिकन सेनेटर की ओर उन्मुख होते हैं, तो यह उथल-पुथल और ध्रुवीकरण ही गहराएगा. अपने समर्थकों भरोसे ,के साथ बर्नी सैंडर्स द्वारा किया गया विश्वासघात, कई लोगों को दो बाहरी पार्टियों का समाधान प्रस्तुत करेगा --- जोकि की सुधारवाद को सीमित करने से भी आगे बढ़ जाएगा.”स्वतंत्र समझने वाले जो ७५ वर्ष के उम्रदराज़ हैं यानी ३९% मतदाता हैं. मिलियनों लोग यह पहचान नहीं कार पाते कि इनमें से “कम भ्रष्ट” कौन है. इन परिस्थितियों में, एक स्वतंत्र समाजवादी पार्टी फ़ौरन आवेग और राजनैतिक शक्ति दोनों ही नहीं प्राप्त कर लेगी.एक मार्क्सिस्ट होने के नाते, हम पुलिस क्रूरता, नस्लवाद, गरीबी, शोषण और उत्पीड़न को ख़त्म करना समझते हैं और इसके लिए हमें पूँजीवाद को समाप्त करना होगा. हम इस बात को समझाते हैं कि वर्ग-रहित राजनैतिक और आर्थिकं संघर्ष ही पूजीवादियों और उनके समर्थकों से पार पाने का एकमात्र तरीका है. हम समझते हैं कि यहाँ कई अपकेन्द्रीय ताकतें मौजूद हैं जो श्रमिक वर्ग की एकता को भंग करते हैं. सौभाग्य से इन्हें कई ज्यादा अपनी सामूहिक हितों के जरिए इनका पर्दाफाश करके हम कठोरता से इनका दमन कर सकते हैं. लेकिन वर्गों की सभी आनुषांगिक रेखाओं की एकता एकदम से सुनिश्चित नहीं हो पाएगी, इसे सामूहिक आम संघर्ष के दौरान समझाना होना. यझ आने वाले वक़्त का कार्यभार है.एक ऐसा संगठन बनाना जो सांगठनिक तौर तरीके और सैद्धांतिक दिशा निर्देश भी देने में सक्षम हो, कोई स्वतःस्फूर्त या आसान काम नहीं होगा.लेकिन एक बेहद पुरानी और असरदार अमेरिकी कहावत के अनुसार, “हर समस्या का एक समाधान होता है” और “ हर काम का एक औजार होता ही है”’. समस्या है पूँजीवाद और औज़ार है जन क्रांति जिसकी जडें हर कार्य-क्षेत्र, अडोस-पड़ोस और कैम्पसों में बिखरे पड़े हैं. हम इसे बनाने की कवायद में आई एम टी (IMT) का आह्वान करते हैं..